अध्याय 1, श्लोक 26: अर्जुन द्वारा युद्ध भूमि में संबंधियों को देखना
अध्याय 1: विषाद योग
संजय
धृतराष्ट्र
अर्जुन द्वारा युद्ध भूमि में अपने संबंधियों को देखना
इस श्लोक में संजय धृतराष्ट्र को बताते हैं कि अर्जुन ने युद्ध भूमि में अपने सभी संबंधियों को देखा - पिता समान लोगों को, दादाओं को, गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों को, पुत्रों को, पोतों को और मित्रों को भी। यह दृश्य अर्जुन के मन में गहरा विषाद उत्पन्न करेगा।
विस्तृत व्याख्या:
• तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः - वहाँ पार्थ (अर्जुन) ने खड़े हुए देखे। 'स्थितान' का अर्थ है 'खड़े हुए' या 'तैयार'।
• पितॄनथ पितामहान् - पिताओं को और दादाओं को। यह पितृवत सम्मान देने योग्य व्यक्तियों को संदर्भित करता है।
• आचार्यान्मातुलान्भ्रातॄन् - गुरुओं को, मामाओं को, भाइयों को। ये सभी निकटतम संबंधी और आदरणीय व्यक्ति थे।
• पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा - पुत्रों को, पोतों को और मित्रों को भी। यह संपूर्ण पारिवारिक और सामाजिक संबंधों का चित्रण है।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: अर्जुन का यह अवलोकन उनके मन में एक गहन मनोवैज्ञानिक संकट उत्पन्न कर रहा है। प्रत्येक संबंध का उल्लेख उनके मन में उस संबंध से जुड़ी भावनाओं, कर्तव्यों और अपेक्षाओं को जगा रहा है। यह मानवीय संवेदनशीलता का सार्वभौमिक चित्रण है।
प्रतीकात्मक अर्थ: यह श्लोक मानव जीवन के सभी महत्वपूर्ण संबंधों का प्रतीक है। 'पिता' आदर्श और मार्गदर्शन का, 'गुरु' ज्ञान और शिक्षा का, 'भाई' सहयोग और प्रतिस्पर्धा का, 'पुत्र' उत्तराधिकार और भविष्य का प्रतीक हैं। अर्जुन का इन सभी के सामने खड़ा होना जीवन के सभी संबंधों और कर्तव्यों के बीच के संघर्ष को दर्शाता है।
यह श्लोक महाभारत युद्ध के उस निर्णायक क्षण को दर्शाता है जब अर्जुन ने युद्ध भूमि में अपने सभी संबंधियों को सीधे तौर पर देखा। यह क्षण अर्जुन के विषाद का सीधा कारण बना और गीता के उपदेश का प्रारंभिक बिंदु सिद्ध हुआ।
पारिवारिक संबंधों का महत्व: प्राचीन भारतीय संस्कृति में पारिवारिक संबंधों को अत्यधिक महत्व दिया जाता था। पिता, दादा, गुरु, मामा, भाई - ये सभी संबंध व्यक्ति के जीवन में विशेष स्थान रखते थे। अर्जुन का इन सभी के विरुद्ध युद्ध करने का विचार उनके लिए अत्यंत कठिन था।
गुरु-शिष्य परंपरा: 'आचार्य' यानी गुरु का विशेष महत्व था। गुरु को ईश्वर के समान माना जाता था और शिष्य का गुरु के विरुद्ध युद्ध करना धर्मसंकट का विषय था। द्रोणाचार्य अर्जुन के गुरु थे और उनके विरुद्ध युद्ध करना अर्जुन के लिए विशेष रूप से कठिन था।
सामाजिक संरचना: इस श्लोक में वर्णित सभी संबंध प्राचीन भारतीय सामाजिक संरचना के महत्वपूर्ण घटक थे। प्रत्येक संबंध का अपना विशेष स्थान और महत्व था।
युद्ध नीति और नैतिकता: प्राचीन युद्ध नीति में संबंधियों के साथ युद्ध करने के नैतिक पहलू पर विशेष ध्यान दिया जाता था। यह श्लोक इस नैतिक संकट का सजीव चित्रण प्रस्तुत करता है।
मानवीय संवेदनशीलता: यह श्लोक मानवीय संवेदनशीलता का सार्वभौमिक चित्रण है। कोई भी सामान्य मनुष्य अपने संबंधियों के विरुद्ध युद्ध करने के विचार से विचलित हो सकता है। अर्जुन की यह स्थिति मानवीय भावनाओं की सार्वभौमिकता को दर्शाती है।
यह श्लोक अर्जुन के विषाद के प्रारंभ का सूचक है। अगले श्लोकों में अर्जुन अपने संबंधियों को देखकर विस्तृत विषाद व्यक्त करेंगे।
श्लोक 27-28: अर्जुन द्वारा युद्ध भूमि में अपने संबंधियों को देखकर विस्तृत वर्णन करना।
श्लोक 29-30: अर्जुन के शारीरिक और मानसिक लक्षणों का वर्णन।
श्लोक 31-47: अर्जुन का विस्तृत विषाद और श्रीकृष्ण से प्रश्न।
श्लोक 48-50: अर्जुन का श्रीकृष्ण के पास बैठ जाना और युद्ध न करने का निश्चय।
अध्याय 2 श्लोक 1-: श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश देना प्रारंभ करना।
अध्याय 2 श्लोक 11-: श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को आत्मा के अमरत्व का ज्ञान।
अध्याय 2 श्लोक 47-: कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन का महान उपदेश।