अध्याय 1, श्लोक 25: अर्जुन द्वारा भीष्म, द्रोण और अन्य राजाओं को देखना
अध्याय 1: विषाद योग
अर्जुन (संजय के माध्यम से)
धृतराष्ट्र
श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को कौरव सेना दिखाना
इस श्लोक में अर्जुन धृतराष्ट्र को बताते हैं कि श्रीकृष्ण ने भीष्म और द्रोण के सामने तथा अन्य सभी राजाओं के सामने उनसे कहा कि वे इन एकत्र हुए कुरुओं को देखें। यह क्षण अर्जुन के विषाद का सीधा कारण बनेगा।
विस्तृत व्याख्या:
• भीष्मद्रोणप्रमुखतः - भीष्म और द्रोण के सामने। ये दोनों कौरव सेना के सबसे वरिष्ठ और सम्मानित योद्धा थे।
• सर्वेषां च महीक्षिताम् - और सभी राजाओं के सामने। 'महीक्षिताम्' का अर्थ है 'पृथ्वी के स्वामी' यानी राजा।
• उवाच पार्थ - (श्रीकृष्ण ने) पार्थ (अर्जुन) से कहा। 'पार्थ' का अर्थ है 'पृथ्वी की पुत्री (कुंती) का पुत्र'।
• पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति - इन एकत्र हुए कुरुओं को देखो। 'समवेतान' का अर्थ है 'एकत्रित हुए'।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: श्रीकृष्ण का यह कथन अर्जुन के लिए एक मनोवैज्ञानिक चुनौती थी। वे जानबूझकर अर्जुन को उन लोगों को देखने के लिए कह रहे हैं जिनसे अर्जुन को सबसे अधिक मोह है - भीष्म पितामह (परिवार के वरिष्ठ सदस्य) और द्रोणाचार्य (गुरु)। यह अर्जुन के आंतरिक संघर्ष को और तीव्र करेगा।
प्रतीकात्मक अर्थ: 'भीष्म और द्रोण' परंपरा, संस्कार और शिक्षा के प्रतीक हैं। 'सभी राजा' सामाजिक मर्यादा और कर्तव्य के प्रतीक हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन को इन सभी के सामने खड़ा कर रहे हैं, जो उनके कर्तव्य और मोह के बीच के संघर्ष को दर्शाता है।
यह श्लोक महाभारत युद्ध के उस निर्णायक क्षण को दर्शाता है जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सीधे तौर पर उनके विरोधियों - विशेष रूप से भीष्म और द्रोण - को देखने के लिए कहा। यह क्षण अर्जुन के विषाद का सीधा कारण बना।
भीष्म का महत्व: भीष्म पितामह कुरु वंश के सबसे वरिष्ठ सदस्य थे और अर्जुन के परदादा थे। वे महान योद्धा और धर्मज्ञ थे। अर्जुन के लिए उनके विरुद्ध युद्ध करना विशेष रूप से कठिन था।
द्रोणाचार्य का महत्व: द्रोणाचार्य अर्जुन के गुरु थे। उन्होंने अर्जुन को धनुर्विद्या सिखाई थी। शिष्य का गुरु के विरुद्ध युद्ध करना हिंदू संस्कृति में एक गहन नैतिक संकट का विषय था।
महीक्षितों का महत्व: 'महीक्षित' यानी राजा। उस समय भारत के विभिन्न राज्यों के राजा दोनों ओर से युद्ध में शामिल थे। इन सभी के सामने अर्जुन का खड़ा होना उनके लिए एक सामाजिक और मनोवैज्ञानिक चुनौती थी।
युद्ध संस्कृति: प्राचीन भारतीय युद्ध परंपरा में योद्धा युद्ध प्रारंभ करने से पहले शत्रु सेना का अवलोकन करते थे। यह न केवल रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि योद्धा के मनोबल और मानसिक तैयारी के लिए भी आवश्यक था।
मनोवैज्ञानिक महत्व: यह क्षण अर्जुन के लिए अत्यंत कठिन था। एक तरफ उनके अपने परिवार के सदस्य और गुरु, दूसरी तरफ उनका कर्तव्य। यह संघर्ह मानव जीवन की एक सार्वभौमिक सच्चाई है - कर्तव्य और संबंधों के बीच चयन की कठिनाई।
यह श्लोक अर्जुन के विषाद के प्रारंभ का सूचक है। अगले श्लोकों में अर्जुन अपने संबंधियों को देखकर विस्तृत विषाद व्यक्त करेंगे।
श्लोक 26-27: अर्जुन द्वारा युद्ध भूमि में अपने संबंधियों को देखकर विस्तृत वर्णन करना।
श्लोक 28-30: अर्जुन के शारीरिक और मानसिक लक्षणों का वर्णन।
श्लोक 31-47: अर्जुन का विस्तृत विषाद और श्रीकृष्ण से प्रश्न।
श्लोक 48-50: अर्जुन का श्रीकृष्ण के पास बैठ जाना और युद्ध न करने का निश्चय।
अध्याय 2 श्लोक 1-: श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश देना प्रारंभ करना।
अध्याय 2 श्लोक 11-: श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को आत्मा के अमरत्व का ज्ञान।
अध्याय 2 श्लोक 47-: कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन का महान उपदेश।