अध्याय 1, श्लोक 22: श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को कौरव सेना दिखाना
अध्याय 1: विषाद योग
संजय
धृतराष्ट्र
श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन के रथ को युद्ध भूमि के मध्य स्थापित करना
इस श्लोक में संजय धृतराष्ट्र को बताते हैं कि अर्जुन के अनुरोध पर श्रीकृष्ण ने उनके उत्तम रथ को दोनों सेनाओं के बीच में स्थापित कर दिया। यह क्षण गीता के उपदेश का सीधा पूर्ववर्ती है।
विस्तृत व्याख्या:
• एवमुक्तो हृषीकेशो - इस प्रकार कहे जाने पर हृषीकेश (श्रीकृष्ण) ने। 'हृषीकेश' का अर्थ है 'इंद्रियों के स्वामी'।
• गुडाकेशेन भारत - गुडाकेश (अर्जुन) द्वारा, हे भारत! 'गुडाकेश' का अर्थ है 'नींद पर विजय प्राप्त करने वाला' और यह अर्जुन का उपनाम है।
• सेनयोरुभयोर्मध्ये - दोनों सेनाओं के बीच में। यह स्थान युद्ध भूमि का सबसे महत्वपूर्ण और केंद्रीय स्थान था।
• स्थापयित्वा रथोत्तमम् - उत्तम रथ को स्थापित करके। 'रथोत्तम' का अर्थ है 'सर्वश्रेष्ठ रथ'।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: श्रीकृष्ण ने अर्जुन के अनुरोध को तुरंत स्वीकार कर लिया, जो उनकी सहायक और मार्गदर्शक भूमिका को दर्शाता है। वे अर्जुन को उस स्थान पर ले जा रहे हैं जहाँ से वे स्पष्ट रूप से स्थिति का आकलन कर सकें, भले ही इससे अर्जुन के मन में और अधिक संदेह उत्पन्न होगा।
प्रतीकात्मक अर्थ: 'रथोत्तम' या 'उत्तम रथ' का प्रतीकात्मक अर्थ है आध्यात्मिक यात्रा का वाहन। श्रीकृष्ण सारथी के रूप में इस आध्यात्मिक यात्रा के मार्गदर्शक हैं, और अर्जुन इस यात्रा के यात्री हैं। दोनों सेनाओं के बीच का स्थान संदेह और निश्चय, धर्म और अधर्म के बीच का संधि स्थल है।
यह श्लोक महाभारत युद्ध के उस निर्णायक क्षण को दर्शाता है जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन के रथ को युद्ध भूमि के ठीक मध्य में स्थापित किया। यह क्षण गीता के उपदेश का सीधा पूर्ववर्ती है।
हृषीकेश और गुडाकेश: ये दोनों नाम गहरे अर्थ रखते हैं। 'हृषीकेश' (इंद्रियों के स्वामी) श्रीकृष्ण की दिव्यता को दर्शाता है, जबकि 'गुडाकेश' (नींद पर विजय प्राप्त करने वाला) अर्जुन की सजगता और तत्परता को दर्शाता है। यह नामों का संयोजन दिव्य मार्गदर्शन और मानवीय प्रयास के समन्वय को दर्शाता है।
रथोत्तम का महत्व: अर्जुन का रथ कोई साधारण रथ नहीं था। इसे 'रथोत्तम' कहा गया है, जिसका अर्थ है 'सर्वश्रेष्ठ रथ'। इस रथ में श्रीकृष्ण स्वयं सारथी थे और हनुमान जी ध्वजा पर विराजमान थे। यह रथ आध्यात्मिक शक्ति और दिव्य सहायता का प्रतीक था।
युद्ध भूमि का मध्य: दोनों सेनाओं के बीच का स्थान युद्ध रणनीति की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण स्थान था। यहाँ से योद्धा दोनों सेनाओं को स्पष्ट रूप से देख सकता था और युद्ध की रणनीति बना सकता था। इस स्थान पर होने का अर्थ था कि योद्धा पूर्ण रूप से युद्ध के लिए तैयार है।
मनोवैज्ञानिक महत्व: इस स्थान पर पहुँचने के बाद अर्जुन का मनोवैज्ञानिक संघर्ष और तीव्र होगा। वे सीधे तौर पर अपने संबंधियों और गुरुओं को देखेंगे, जिससे उनका मोह और द्वंद्व बढ़ेगा। यह मानवीय संवेदनशीलता का सार्वभौमिक चित्रण है।
दार्शनिक संदर्भ: यह श्लोक गीता के दार्शनिक संवाद का सीधा पूर्ववर्ती है। अगले ही क्षण अर्जुन अपना विषाद व्यक्त करेंगे और श्रीकृष्ण उन्हें जीवन के मूलभूत सत्यों का उपदेश देंगे।
यह श्लोक गीता के उपदेश का सीधा पूर्ववर्ती है। अब अर्जुन युद्ध भूमि के मध्य से अपने संबंधियों को देखेंगे और उनका विषाद प्रकट होगा।
श्लोक 23-24: अर्जुन द्वारा युद्ध भूमि में अपने संबंधियों को देखकर विस्तृत वर्णन करना।
श्लोक 25-27: अर्जुन का श्रीकृष्ण से युद्ध न करने का निर्णय सुनाना।
श्लोक 28-30: अर्जुन के शारीरिक और मानसिक लक्षणों का वर्णन।
श्लोक 31-47: अर्जुन का विस्तृत विषाद और श्रीकृष्ण से प्रश्न।
श्लोक 48-50: अर्जुन का श्रीकृष्ण के पास बैठ जाना और युद्ध न करने का निश्चय।
अध्याय 2 श्लोक 1-: श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश देना प्रारंभ करना।
अध्याय 2 श्लोक 11-: श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को आत्मा के अमरत्व का ज्ञान।