भगवद गीता श्लोक 13

अध्याय 1, श्लोक 13: कौरव सेना द्वारा युद्ध की घोषणा और वाद्यों का महासंगीत

श्लोक 13: संजय उवाच

ततः शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्॥
तब शंख, नगाड़े, ढोल, मृदंग और गोमुख (शिंगे) आदि वाद्य एक साथ बजाए गए और वह शब्द अत्यंत कोलाहलपूर्ण हो गया।

अध्याय

अध्याय 1: विषाद योग

वक्ता

संजय

श्रोता

धृतराष्ट्र

संदर्भ

कौरव सेना द्वारा युद्ध की औपचारिक घोषणा

अर्थ और व्याख्या

इस श्लोक में संजय धृतराष्ट्र को बताते हैं कि भीष्म के शंख बजाने के बाद कौरव सेना के सभी वाद्ययंत्र एक साथ बजाए गए। शंख, नगाड़े, ढोल, मृदंग और अन्य वाद्यों के इस महासंगीत ने एक अत्यंत कोलाहलपूर्ण वातावरण उत्पन्न कर दिया, जो युद्ध की भीषणता और तीव्रता का संकेत था।

विस्तृत व्याख्या:

ततः शंखाश्च भेर्यश्च - तब शंख और नगाड़े। ये दोनों वाद्य युद्ध में विशेष महत्व रखते थे - शंख धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व का था, जबकि नगाड़े सैन्य संचार और उत्साहवर्धन के लिए प्रयुक्त होते थे।

पणवानकगोमुखाः - ढोल, मृदंग और गोमुख (शिंगे)। ये सभी वाद्य सेना के मनोबल को बढ़ाने और युद्ध के वातावरण को तीव्र बनाने के लिए प्रयुक्त होते थे।

सहसैवाभ्यहन्यन्त - एक साथ बजाए गए। यह दर्शाता है कि सभी वाद्य समन्वित रूप से बजाए गए, जो सेना की एकता और संगठन को दर्शाता है।

स शब्दस्तुमुलोऽभवत् - वह शब्द कोलाहलपूर्ण हो गया। 'तुमुल' शब्द अत्यधिक शोर और कोलाहल को दर्शाता है, जो युद्ध की भीषणता का प्रतीक है।

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: यह महासंगीत एक सुनियोजित मनोवैज्ञानिक रणनीति थी। एक ओर यह कौरव सेना के मनोबल को चरम सीमा तक पहुँचाता था, वहीं दूसरी ओर शत्रु सेना के मन में भय उत्पन्न करता था। विभिन्न प्रकार के वाद्यों का एक साथ बजना सेना की विशालता और शक्ति का प्रतीक था, जो दोनों पक्षों पर गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालता था।

जीवन में सीख

समन्वय और एकता का महत्व: विभिन्न वाद्यों का एक साथ बजना हमें सिखाता है कि विविधता में एकता और समन्वय से ही महान कार्य संभव होते हैं।
मनोबल का महत्व: वाद्यों का संगीत हमें सिखाता है कि उच्च मनोबल सफलता की कुंजी है और इसे बनाए रखने के लिए सकारात्मक वातावरण आवश्यक है।
संकेतों और प्रतीकों की शक्ति: वाद्यध्वनियाँ हमें सिखाती हैं कि संकेत और प्रतीक मनुष्य के मन पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं।
तैयारी और संगठन: सभी वाद्यों का एक साथ बजना हमें सिखाता है कि पूर्ण तैयारी और संगठन से ही बड़े लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं।
मनोवैज्ञानिक तैयारी: यह घटना हमें सिखाती है कि किसी भी बड़े कार्य से पहले मानसिक और मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार होना आवश्यक है।

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ

यह श्लोक महाभारत युद्ध के उस ऐतिहासिक क्षण को दर्शाता है जब कौरव सेना ने युद्ध की औपचारिक घोषणा कर दी और युद्ध का वातावरण पूरी तरह से निर्मित हो गया।

प्राचीन युद्ध संगीत: प्राचीन भारत में युद्ध के समय विभिन्न वाद्ययंत्र बजाने की परंपरा थी। ये वाद्य न केवल सेना के मनोबल को बढ़ाते थे, बल्कि युद्ध के नियमों और संकेतों का हिस्सा भी थे।

वाद्यों का महत्व:

  • शंख: धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व का, देवताओं से आशीर्वाद की कामना के लिए
  • भेरी (नगाड़े): सैन्य संचार और आक्रमण के संकेत के लिए
  • पणव (ढोल): सेना की गति और लय बनाए रखने के लिए
  • आनक (मृदंग): उत्साह और जोश भरने के लिए
  • गोमुख (शिंगा): दूर तक संदेश पहुँचाने के लिए

युद्ध संस्कृति: प्राचीन भारतीय युद्ध संस्कृति में युद्ध केवल एक हिंसक संघर्ष नहीं, बल्कि एक धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान था। वाद्यों का संगीत इस अनुष्ठान का महत्वपूर्ण हिस्सा था।

मनोवैज्ञानिक युद्ध: यह महासंगीत मनोवैज्ञानिक युद्ध का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इससे न केवल कौरव सेना का मनोबल बढ़ता था, बल्कि पांडव सेना के मन में भय और अनिश्चितता भी उत्पन्न होती थी।

ध्वनि प्रदूषण का प्राचीन स्वरूप: 'तुमुल' शब्द इस बात का संकेत है कि यह ध्वनि इतनी तीव्र और भयानक थी कि वह एक प्रकार का ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न कर रही थी, जो युद्ध की भीषणता का प्रतीक था।

संबंधित श्लोक

यह श्लोक युद्ध की औपचारिक शुरुआत का चरमोत्कर्ष है। अब पांडव सेना भी अपने शंख बजाएगी और युद्ध का वातावरण और अधिक तीव्र हो जाएगा।

श्लोक 12: भीष्म पितामह द्वारा सिंहनाद करके कौरव सेना का उत्साहवर्धन करना।

श्लोक 14-15: पांडव सेना द्वारा शंखध्वनि करके युद्ध के लिए तैयार होना।

श्लोक 16-18: अर्जुन द्वारा युद्ध भूमि में अपने संबंधियों को देखकर विषाद व्यक्त करना।

श्लोक 19-20: अर्जुन का श्रीकृष्ण से रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले जाने का अनुरोध करना।

श्लोक 21-23: अर्जुन द्वारा युद्ध भूमि में अपने संबंधियों को देखकर मोह और दुःख व्यक्त करना।

श्लोक 24-25: अर्जुन का श्रीकृष्ण से युद्ध न करने का निर्णय सुनाना।

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