अध्याय 1, श्लोक 8: दुर्योधन द्वारा कौरव सेना के प्रमुख योद्धाओं का परिचय
अध्याय 1: विषाद योग
दुर्योधन
द्रोणाचार्य
कौरव सेना के सेनापतियों का परिचय
इस श्लोक में दुर्योधन कौरव सेना के सबसे शक्तिशाली और प्रमुख योद्धाओं का परिचय देता है। वह द्रोणाचार्य को सबसे पहले नाम देकर सम्मान प्रकट करता है और फिर अन्य महारथियों के नाम बताता है। यह सूची कौरव सेना की शक्ति और गौरव को दर्शाती है।
विस्तृत व्याख्या:
• भवान्भीष्मश्च कर्णश्च - आप (द्रोण), भीष्म और कर्ण। दुर्योधन सबसे पहले तीन सबसे शक्तिशाली योद्धाओं का नाम लेता है - द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह और कर्ण।
• कृपश्च समितिञ्जयः - और युद्ध में विजयी कृपाचार्य। कृपाचार्य को 'समितिञ्जय' (युद्ध में विजय प्राप्त करने वाला) कहकर दुर्योधन उनकी युद्ध कुशलता की प्रशंसा करता है।
• अश्वत्थामा विकर्णश्च - अश्वत्थामा और विकर्ण। अश्वत्थामा द्रोणाचार्य के पुत्र थे और विकर्ण दुर्योधन का भाई था।
• सौमदत्तिस्तथैव च - और सोमदत्त का पुत्र (भूरिश्रवा) भी। भूरिश्रवा बलराम के मित्र और एक महान योद्धा थे।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: दुर्योधन का यह वर्णन उसकी मनोवैज्ञानिक रणनीति का हिस्सा है। वह द्रोणाचार्य को यह विश्वास दिलाना चाहता है कि उनकी सेना में भी उतने ही शक्तिशाली योद्धा हैं जितने पांडव सेना में हैं। यह वर्णन द्रोण के मन में उत्पन्न हुई चिंता को कम करने और उनमें विश्वास जगाने के लिए है।
यह श्लोक महाभारत युद्ध के पूर्व के उस क्षण को दर्शाता है जब दुर्योधन कौरव सेना के प्रमुख योद्धाओं का परिचय दे रहा है। इन योद्धाओं में से प्रत्येक का अपना विशेष स्थान और महत्व है:
भीष्म पितामह: कौरवों और पांडवों के पितामह, महान योद्धा और सेनापति। उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था और वे महाभारत युद्ध के सर्वोच्च सेनापति थे।
द्रोणाचार्य: कौरवों और पांडवों के गुरु, अस्त्र-शस्त्र विद्या के महान आचार्य। उन्होंने ही अर्जुन को धनुर्विद्या सिखाई थी।
कर्ण: कुंती के ज्येष्ठ पुत्र और अर्जुन के बड़े भाई, दानवीर और महान धनुर्धर। वे अंग देश के राजा थे और दुर्योधन के घनिष्ठ मित्र थे।
कृपाचार्य: अस्त्र-शस्त्र विद्या के महान आचार्य, शरद्वान के पुत्र और कौरव-पांडवों के कुलगुरु।
अश्वत्थामा: द्रोणाचार्य के पुत्र, जो ब्रह्मास्त्र के ज्ञाता थे और कृपाचार्य के भांजे थे।
विकर्ण: धृतराष्ट्र के पुत्र और दुर्योधन के भाई, जो धर्म के पक्ष में बोलने के लिए जाने जाते थे।
भूरिश्रवा (सौमदत्ति): सोमदत्त के पुत्र, बलराम के मित्र और एक महान योद्धा जो सात्यकि के हाथों मारे गए।
यह श्लोक दुर्योधन के कौरव सेना के वर्णन की निरंतरता है। आगे के श्लोकों में वह और अधिक योद्धाओं का उल्लेख करता है और अंत में अपनी सेना की शक्ति का वर्णन करता है।
श्लोक 7: दुर्योधन द्वारा अपनी सेना के योद्धाओं का परिचय देने की शुरुआत।
श्लोक 9: दुर्योधन द्वारा कौरव सेना के शेष प्रमुख योद्धाओं का वर्णन।
श्लोक 10: दुर्योधन द्वारा अपनी सेना की अजेयता का दावा और भीष्म के प्रति विश्वास व्यक्त करना।
श्लोक 11: दुर्योधन द्वारा सेना की रक्षा की जिम्मेदारी भीष्म को सौंपना।
श्लोक 12: भीष्म द्वारा सिंहनाद करके कौरव सेना का उत्साहवर्धन करना।