भगवद गीता श्लोक 28

अध्याय 1, श्लोक 28: अर्जुन का श्रीकृष्ण से अपनी दुर्बलता व्यक्त करना

श्लोक 28: अर्जुन उवाच

अर्जुन उवाच
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्॥
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति।
अर्जुन बोले: हे कृष्ण! युद्ध की इच्छा से खड़े हुए इस स्वजन को देखकर मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं और मेरा मुख सूख रहा है।

अध्याय

अध्याय 1: विषाद योग

वक्ता

अर्जुन

श्रोता

श्रीकृष्ण

संदर्भ

अर्जुन द्वारा अपनी शारीरिक और मानसिक दुर्बलता व्यक्त करना

अर्थ और व्याख्या

इस श्लोक में अर्जुन श्रीकृष्ण से अपनी शारीरिक और मानसिक दुर्बलता व्यक्त करते हैं। वे बताते हैं कि युद्ध की इच्छा से खड़े हुए अपने स्वजनों को देखकर उनके अंग शिथिल हो रहे हैं और मुख सूख रहा है। यह अर्जुन के विषाद का स्पष्ट शारीरिक प्रकटीकरण है।

विस्तृत व्याख्या:

दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण - हे कृष्ण! इस स्वजन को देखकर। 'स्वजनं' का अर्थ है 'अपने लोग' या 'संबंधी'।

युयुत्सुं समुपस्थितम् - युद्ध की इच्छा से खड़े हुए। 'युयुत्सुं' का अर्थ है 'युद्ध करने की इच्छा रखने वाला'।

सीदन्ति मम गात्राणि - मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं। 'सीदन्ति' का अर्थ है 'शिथिल होना' या 'दुर्बल होना'।

मुखं च परिशुष्यति - और मुख सूख रहा है। 'परिशुष्यति' का अर्थ है 'पूर्ण रूप से सूख जाना'।

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: अर्जुन की यह प्रतिक्रिया तीव्र मनोवैज्ञानिक तनाव की स्पष्ट अभिव्यक्ति है। शारीरिक लक्षण - अंगों का शिथिल होना और मुख का सूखना - गहन मानसिक संकट के स्पष्ट संकेत हैं। यह दर्शाता है कि मानसिक तनाव का सीधा प्रभाव शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है।

प्रतीकात्मक अर्थ: 'अंगों का शिथिल होना' मनोबल के टूटने का प्रतीक है। 'मुख का सूखना' भय और आशंका का प्रतीक है। यह श्लोक मानवीय दुर्बलता और भावनात्मक संकट का सजीव चित्रण प्रस्तुत करता है।

जीवन में सीख

मानसिक स्वास्थ्य का महत्व: अर्जुन के शारीरिक लक्षण मानसिक तनाव के प्रभाव को दर्शाते हैं। यह हमें सिखाता है कि मानसिक स्वास्थ्य का शारीरिक स्वास्थ्य से सीधा संबंध है।
भावनाओं की अभिव्यक्ति: अर्जुन ने अपनी दुर्बलता को स्वीकार किया और व्यक्त किया। यह हमें सिखाता है कि अपनी कमजोरियों और भावनाओं को स्वीकार करना और व्यक्त करना महत्वपूर्ण है।
मार्गदर्शन की आवश्यकता: अर्जुन ने श्रीकृष्ण से अपनी समस्या साझा की। यह हमें सिखाता है कि कठिन परिस्थितियों में अनुभवी लोगों से मार्गदर्शन लेना चाहिए।
आत्म-जागरूकता: अर्जुन ने अपनी शारीरिक और मानसिक स्थिति को पहचाना। यह हमें सिखाता है कि आत्म-जागरूकता और आत्म-विश्लेषण महत्वपूर्ण हैं।
मानवीय सीमाओं का स्वीकार: अर्जुन ने अपनी मानवीय सीमाओं को स्वीकार किया। यह हमें सिखाता है कि हर व्यक्ति की कुछ सीमाएँ होती हैं और उन्हें स्वीकार करना चाहिए।

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ

यह श्लोक महाभारत युद्ध के उस निर्णायक क्षण को दर्शाता है जब अर्जुन का विषाद पूर्ण रूप से प्रकट हुआ और उसके शारीरिक लक्षण स्पष्ट हो गए। यह क्षण गीता के उपदेश का सीधा पूर्ववर्ती है।

मनो-शारीरिक संबंध: प्राचीन भारतीय चिकित्सा और दर्शन में मन और शरीर के घनिष्ठ संबंध को मान्यता दी गई है। अर्जुन के ये लक्षण इसी सिद्धांत की पुष्टि करते हैं कि गहन मानसिक संकट का सीधा प्रभाव शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है।

योद्धा मनोविज्ञान: प्राचीन युद्ध साहित्य में योद्धाओं के मनोवैज्ञानिक संकट और उनके शारीरिक प्रभावों का वर्णन मिलता है। अर्जुन की यह स्थिति एक योद्धा के गहन मनोवैज्ञानिक संकट का सटीक चित्रण है।

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण: आयुर्वेद के अनुसार, भय और शोक वात दोष को प्रकुपित करते हैं, जिससे शारीरिक शिथिलता और मुख का सूखना जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। अर्जुन के ये लक्षण इसी आयुर्वेदिक सिद्धांत के अनुरूप हैं।

मानवीय सच्चाई: यह श्लोक मानवीय सच्चाई को दर्शाता है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी महान योद्धा क्यों न हो, गहन भावनात्मक संकट की स्थिति में शारीरिक रूप से प्रभावित हो सकता है।

सांस्कृतिक प्रभाव: इस श्लोक ने भारतीय संस्कृति में मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक संवेदनशीलता के महत्व को स्थापित किया। यह शिक्षा देता है कि मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का ध्यान रखना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि शारीरिक स्वास्थ्य का।

संबंधित श्लोक

यह श्लोक अर्जुन के विषाद के शारीरिक प्रकटीकरण का सूचक है। अगले श्लोकों में अर्जुन अपने और भी शारीरिक लक्षणों का वर्णन करेंगे और अपना विस्तृत विषाद व्यक्त करेंगे।

श्लोक 29-30: अर्जुन के अतिरिक्त शारीरिक और मानसिक लक्षणों का विस्तृत वर्णन।

श्लोक 31-47: अर्जुन का विस्तृत विषाद और श्रीकृष्ण से प्रश्न।

श्लोक 48-50: अर्जुन का श्रीकृष्ण के पास बैठ जाना और युद्ध न करने का निश्चय।

अध्याय 2 श्लोक 1-10: श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को प्रारंभिक उपदेश।

अध्याय 2 श्लोक 11-: श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को आत्मा के अमरत्व का ज्ञान।

अध्याय 2 श्लोक 47-: कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन का महान उपदेश।

अध्याय 2 श्लोक 62-63: काम और क्रोध के विषय में उपदेश।

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