अर्थ: जिसके मन में दुःखों में उद्वेग नहीं होता, सुखों में जिसकी इच्छा नहीं रहती और जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गए हैं, ऐसा मुनि स्थिरबुद्धि कहलाता है।
भक्ति और समर्पण के उद्धरण
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥
श्लोक 18.66
अर्थ: सब धर्मों को त्यागकर तू केवल मेरी ही शरण में आ जा, मैं तुझे समस्त पापों से मुक्त कर दूंगा, तू शोक मत कर।
अर्थ: तू मन से मेरे में स्थित रह, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन कर, मुझे नमस्कार कर, इस प्रकार मुझमें स्थित होकर तू मुझे ही प्राप्त होगा, मैं तुझसे सत्य वचन कहता हूँ, क्योंकि तू मेरा प्रिय है।